February 20, 2015

गुस्सा बहुत आता है.....

गुस्सा बहुत आता है, गलत बातो पर, गलत आदतो पर, अपने आप पर, मगर सिर्फ अंदर ही अंदर, प्रैक्टिकली कभी सामने से किसी पर गुस्सा होना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है, इसकी वजह शायद मेरा इन्ट्रोवर्टेड होना है, किसी की कोई बात बुरी लगती है तो अकेले में रो लेना, किसी पर गुस्सा आता है तो भी रो लेना, किसी की याद आती है तो भी रो लेना, मगर सामने से एक शब्द किसी से कहा नही जाता है, ये मन की कमजोरी का उदाहरण है लेकिन हम लोग अपने आप को स्ट्रांग साबित करने लिए इसे अहिंसा का नाम दे देते हैं, 
कह लेने दो अगर उसने कुछ गलत कहा हो हमे तो, भगवान सब देखते हैं, सबको अपने कर्मो का फल अपने आप मिल जाता है, जाने दो, छोडो भूल जाओ, एक- दो घंटे रोने के बाद जब सारा गुस्सा ठंडा हो जाता है तो ऐसे ही विचार मन में आते हैं, खुद की बेबसी को सांत्वना देते हैं ………… 

दिल कमजोर रखते हैं हम माना मगर 
दुनिया की तरह चालाकी तो नही रखते .....

लिखने में ये शे'र अच्छा लग रहा है लेकिन अगर हकीकत में इससे वाकिफ हुआ जाये तो ये एक बहुत बड़ी कमजोरी है, बिना चालाकी के, स्मार्टनेस के, इस दुनिया में जीना बहुत मुश्किल है, कदम-कदम पर लोग आपके भोलेपन का फायदा उठा ले जाते हैं वो भी आप पर एहसान जता कर ! मुझपर ऐसे एहसान बहुत हैं लोगो के, कब किसने मुझपर क्या एहसान कर दिया, मुझे इसकी ठीक से खबर भी नही हो पाती और लोग अपने द्वारा मुझ पर किये गए एहसानो की लिस्ट लेकर मेरे सामने आ जाते हैं … 

बोझ दिल पर उनके एहसानो का बढ़ता ही जा रहा है 
अब तो साँस भी लेते हैं तो एहसानो की आवाज़ आती है .... 


इस दुनिया में जीने के लिए कुछ हो न हो स्मार्टनेस जरूर होनी चाहिए, आपको सामने वाले को जवाब देना आना चाहिए, बात करने का, लोगो से मिलने का तरीका आना चाहिए और सबसे बड़ी बात खुद को बहुत कीमती समझना आना चाहिए ताकि आपकी हालत राह में पड़े किसी पत्थर के जैसी न हो जाये !

जो आसानी से मिल जाये उसकी कोई कीमत नही होती 
लोग वही प्यारे लगते हैं लोगो को जो कीमती होते हैं .....


मगर अफ़सोस अपनी कोई कीमत नही, न गर्व है न स्मार्टनेस और न लड़ने की हिम्मत ! न बात करने का लहजा आता है और न मिलने का तरीका, बस अगर कुछ है हमारे पास तो वो है पागलपन .....



ये पूरी धरती दी है तुमने समझदार लोगो को 
मैं पागल हूँ, मुझे ऐ खुदा अलग से बस एक कोना दे देना  ......!!


February 13, 2015

खुद से तो कोई भी बर्बाद नही होता ...



कई बार अजीब-अजीब से ख्याल मन में आने लगते हैं, ऐसे ख्याल जो नींद को मुझसे कोसो दूर कर देते हैं, पता नही वो झूठ होते हैं या सच लेकिन जो भी होते हैं  मुझे मुझसे ही खफा होने पर मजबूर कर देते हैं, लोगो को खुद पर गर्व होता है मगर मुझे खुद के लिए ऐसा कुछ महसूस ही नही होता जिससे कि गर्व किया जाये  .... 
अक्सर चुपचाप लेट कर घंटो तक सोचना मेरी हॉबी में शामिल हो गया है, क्या सोचती हूँ ये बता नही सकती क्योंकि जो भी सोचती हूँ वो बहुत उलझा हुआ होता है, अब तक जो हुआ है वो क्यों हुआ, कैसे हुआ, वो सही था या गलत, अगर सही था तो किस्मत में लिखा था और अगर गलत था तो उसका कारण एकमात्र मैं हूँ, जो बिगड़ा है सब मेरी वजह से, जिसके साथ जो भी बुरा हुआ है वो भी सिर्फ मेरी वजह से  …… और भी न जाने क्या क्या। पता नही जो हुआ है वो मेरी वजह से हुआ है, मैंने सबके साथ बुरा किया है ये सच है या मेरे मन की उपज।  सच तो सिर्फ भगवान ही जानते हैं कि मैंने गलत किया है या लोगो ने मेरे साथ…… । 
एक अजीब सा दर्द दिल में धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, क्या होता है नही मालूम बस कई बार बहुत-बहुत रोने को दिल करता है, कई बार आंसू बहते भी हैं और कई बार आंसू नही आते बस दिल भारी होता जाता है, किसी की जरा सी इग्नोरेंस, जरा सा डाँटना मुझे रुला देता है, फिर लगता है जैसे ज़िंदगी खत्म हो गयी हो, लेकिन ज़िंदगी इतनी आसानी से खत्म कहाँ होती है, आज रोये कल फिर से पहले जैसे। 



रोज़ एक बार सोचती हूँ कि अब से किसी को भी अपने लिए परेशान नही करूंगी, किसी से कुछ नही कहूँगी, बस चुप रहूंगी, किसी के जीवन में दखल नही दूंगी, लेकिन हर रोज़ अपने ही किये वादो को तोड़ देती हूँ, वजह ये दिल है, ये चाहता ही नही किसी से दूर जाना, बस हर वक़्त सबके पास रहना चाहता है, बाते करना चाहता है, सबसे प्यार करना चाहता है लेकिन मैं दूर जाना चाहती हूँ, सबसे, लोगो से, दुनिया से, अपने आप से, एकांत में रहना चाहती हूँ, शांत बिलकुल, किसी ऐसी जगह जहाँ सिर्फ प्रेम हो, जहाँ सब इंसान हों और एक धरती हो, न कोई देश हो, न शहर न कोई पुरुष या स्त्री ! कोई दंगा न कोई झगड़ा न हो, बस सब कुछ शांत हो, शीतल हो, ऐसा कि मन को सुकून दे, आँखों को ठंडक दे, जहाँ भागम-भाग न, जहाँ हर कोई अपनी मर्जी से अपना जीवन जिए, जहाँ शिव हों, शक्ति हो, जहाँ शांति हो, जहाँ सभी साथ हो। 
ये सब एक सपने के जैसा है जानती हूँ मगर फिर भी उम्मीद रखती हूँ कि कोई रास्ता मिल जाये ऐसा जो मुझे इस दुनिया से निकालकर उस मंजिल तक ले चले ! 


तुझ पर भी ऐ ज़िंदगी अब विश्वाश नही होता 
उनकी तरह हर कोई तो खास नही होता 

मैंने फूलो से कहा था तुम खिले रहना 
खता उनकी भी नही कोई, 
खुद से तो कोई भी बर्बाद नही होता .....!!







February 7, 2015

खुद से ही जैसे बेगाने से हो गये हैं हम ......



न जाने क्यों आजकल खुद से भी बेगाना होने का एहसास हो रहा है, लगता है जैसे कोई सब कुछ छीन कर ले गया हो मुझसे और जो मेरे पास बचा है दिल करता वो सब देकर किसी को ले चलूँ खुद को एक अजनबी सी मंजिल की ओर ! रूपये, पैसे, रिश्ते, नाते सब से मुहं मोड़ कर चल दूँ एक गुमनाम से रास्ते पर ..., धन- दौलत, पैसा अब किसी की इच्छा शेष नही रही, सोना-चांदी, हीरा सब कुछ कंकड़ पत्थर के समान लगने लगा है ....मन के कमरे में जैसे कोहरा छाया हो, खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो हलकी सी धुप नज़र तो आई लेकिन मन को फिर भी सुकून नही मिला, मैं मन के कमरे से बाहर निकलना ही नही चाहती, धुप लगता है जैसे मेरी आँखों में चुभ रही हो..., रात भर किस दर्द से मेरी आँखे भीगी रहती हैं पता नही, लगता है जैसे आंसू किसी और बात के हों आँखों में और दिल में दर्द किसी और बात का हो रहा हो...., आधी-आधी रात रोते हुए गुजर जाती है और अगला पूरा दिन ये सोचने में कि आखिर मेरे इतना रोने की वजह क्या थी..., लोग सोचते हैं मैं बहुत दुःख में हूँ, इसलिए उदास हूँ लेकिन मैं कौन से दुःख में हूँ ये न वो जानते हैं और न ही मैं..., हाँ इतना जरुर जानती हूँ कि ख़ुशी मेरे नसीब में नही लिखी, शायद इसीलिए मैं दुखी हूँ, कुछ लोग हैं जिनकी आँखों से बहता एक-एक आंसू मुझे जिंदगी से कोसो दूर ले जाता है, उनके दुखी होने के एहसास होने भर से मेरी आत्मा कहने लगती है "जिंदगी मुझे आज़ाद कर दे", मुझसे उन सभी का दुःख देखा नही जाता...., जब तक जिंदगी रहेगी दुःख, दर्द रहेगा...., मैं जिन्हें नही जानती उनकी उदासी मुझे ये सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर क्यों मैं अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाऊँ ...., लोगो का दुःख-दर्द जिंदगी में अब और आगे जाने से रोक लेता है...., 



कफ़न ओढ़े निकलता हूँ, आजकल जब निकलता हूँ 
न जाने किस शहर की किस गली में मौत मिल जाये ....

इस बदलती दुनिया में इन्सान के जीवन की कीमत कुछ भी नही रह गयी है, मरना-मारना बहुत मामूली सी बात हो गयी, उन दिलो का दर्द जो अपनों को खो देते हैं, मुझे किसी को भी अपना बनाने से रोकता है, बड़ी तकलीफ होती है जब कोई अपना छोड़कर चला जाये, मुहं फेर कर बैठ जाये, अपना होकर भी आपको पराया कर दे .....

सीने में दिल भी होता है और उसमे दर्द भी 
ये तब जाना हमने जब किसी को अपना माना ....

मन उब गया है, जिंदगी कहीं भी अब महसूस नही होती, बाहर से सब नार्मल है, मगर अन्दर , अन्दर जैसे सब खत्म होता जा रहा है, क्या बिखर रहा है नही मालूम, क्या जल रहा है, पता नही ...बस कुछ है जो मुझे अंदर ही अंदर खत्म करता जा रहा है, मेरे मन से अपनत्व के उस भाव को मिटाता चला जा रहा है ........दिल चाहता है अब खो जाना ......!!!