February 13, 2015

खुद से तो कोई भी बर्बाद नही होता ...



कई बार अजीब-अजीब से ख्याल मन में आने लगते हैं, ऐसे ख्याल जो नींद को मुझसे कोसो दूर कर देते हैं, पता नही वो झूठ होते हैं या सच लेकिन जो भी होते हैं  मुझे मुझसे ही खफा होने पर मजबूर कर देते हैं, लोगो को खुद पर गर्व होता है मगर मुझे खुद के लिए ऐसा कुछ महसूस ही नही होता जिससे कि गर्व किया जाये  .... 
अक्सर चुपचाप लेट कर घंटो तक सोचना मेरी हॉबी में शामिल हो गया है, क्या सोचती हूँ ये बता नही सकती क्योंकि जो भी सोचती हूँ वो बहुत उलझा हुआ होता है, अब तक जो हुआ है वो क्यों हुआ, कैसे हुआ, वो सही था या गलत, अगर सही था तो किस्मत में लिखा था और अगर गलत था तो उसका कारण एकमात्र मैं हूँ, जो बिगड़ा है सब मेरी वजह से, जिसके साथ जो भी बुरा हुआ है वो भी सिर्फ मेरी वजह से  …… और भी न जाने क्या क्या। पता नही जो हुआ है वो मेरी वजह से हुआ है, मैंने सबके साथ बुरा किया है ये सच है या मेरे मन की उपज।  सच तो सिर्फ भगवान ही जानते हैं कि मैंने गलत किया है या लोगो ने मेरे साथ…… । 
एक अजीब सा दर्द दिल में धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, क्या होता है नही मालूम बस कई बार बहुत-बहुत रोने को दिल करता है, कई बार आंसू बहते भी हैं और कई बार आंसू नही आते बस दिल भारी होता जाता है, किसी की जरा सी इग्नोरेंस, जरा सा डाँटना मुझे रुला देता है, फिर लगता है जैसे ज़िंदगी खत्म हो गयी हो, लेकिन ज़िंदगी इतनी आसानी से खत्म कहाँ होती है, आज रोये कल फिर से पहले जैसे। 



रोज़ एक बार सोचती हूँ कि अब से किसी को भी अपने लिए परेशान नही करूंगी, किसी से कुछ नही कहूँगी, बस चुप रहूंगी, किसी के जीवन में दखल नही दूंगी, लेकिन हर रोज़ अपने ही किये वादो को तोड़ देती हूँ, वजह ये दिल है, ये चाहता ही नही किसी से दूर जाना, बस हर वक़्त सबके पास रहना चाहता है, बाते करना चाहता है, सबसे प्यार करना चाहता है लेकिन मैं दूर जाना चाहती हूँ, सबसे, लोगो से, दुनिया से, अपने आप से, एकांत में रहना चाहती हूँ, शांत बिलकुल, किसी ऐसी जगह जहाँ सिर्फ प्रेम हो, जहाँ सब इंसान हों और एक धरती हो, न कोई देश हो, न शहर न कोई पुरुष या स्त्री ! कोई दंगा न कोई झगड़ा न हो, बस सब कुछ शांत हो, शीतल हो, ऐसा कि मन को सुकून दे, आँखों को ठंडक दे, जहाँ भागम-भाग न, जहाँ हर कोई अपनी मर्जी से अपना जीवन जिए, जहाँ शिव हों, शक्ति हो, जहाँ शांति हो, जहाँ सभी साथ हो। 
ये सब एक सपने के जैसा है जानती हूँ मगर फिर भी उम्मीद रखती हूँ कि कोई रास्ता मिल जाये ऐसा जो मुझे इस दुनिया से निकालकर उस मंजिल तक ले चले ! 


तुझ पर भी ऐ ज़िंदगी अब विश्वाश नही होता 
उनकी तरह हर कोई तो खास नही होता 

मैंने फूलो से कहा था तुम खिले रहना 
खता उनकी भी नही कोई, 
खुद से तो कोई भी बर्बाद नही होता .....!!







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