March 31, 2015

चुभती हैं मजबूरियां सीने में बन के शूल .....


चुभती हैं मजबूरियां 
सीने में बन के शूल 
काश कि पैसे की भी 
औकात होती बराबर धूल ...
रंग चुनने का सभी को 
मिलता मौका फूल से 
दिल अगर होता नही 
दुखता नही फिर किसी भूल से ......
जानकार करते नही 
होती है अनजाने में भूल 
चुभती हैं ये मजबूरियां 
सीने में बन कर शूल .......
वक़्त के काँटों से 
ये दिल छलनी हो गया 
या मेरे अपनों ने मुझको 
जख्म ये सारे दिए हैं 
अबतलक हम जिनसे मिले 
जाना उनसे राज़ ये 
हैं जहाँ में रिश्ते जितने 
सब जरूरत का है खेल 
चुभती हैं मजबूरियां 
सीने में बन के शूल 
काश कि पैसे की भी 
औकात होती बराबर धूल .....!!!

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