ख्वाहिशो के पंख
धीरे-धीरे बिखरते जा रहे हैं
उम्र जैसे-जैसे
ढलती जा रही है .....
ख्वाब अब लगता ही नही
ज़िंदा भी रहेंगे
सोचकर बस यही
ख्वाब देखने से भी अब
हम डरने से लगे हैं .....
कोई तो जाकर बताएगा उनको
हाल इस दिल का क्या है
सोचते थे कभी हम
कि ऐसा भी होगा
मगर अब भ्रम
सब टूटने लगे हैं ......
रिश्ते चाहे खून के हों या दिल के
एक दिन टूट ही जाते हैं
किसी को अपना कहने से भी
अब हम डरने लगे हैं ......
कर के आँखों को बंद
अब हम सो जाना चाहते हैं
दिन भी तो रातो से अब
स्याह होने लगे हैं ......
न गिला तुमसे न कोई शिकायत है
अपनी ही किस्मत का लिखा है
जो हम अपने ही हाथो
बर्बाद होने लगे हैं ....... !!!