December 28, 2015

माँ

काश ! कि सपने की तरह 
कहीं मिल जाओ तुम मुझे 
यूँ ही अचानक माँ 
और मैं लग कर गले तुम्हारे 
जी भर के रो लूँ 
सो जाऊ गोद में रखकर 
सिर तुम्हारी 
तुम्हे कहीं जाने न दूँ 
ये शहरो की दूरियां 
बहुत रुलाने लगी है माँ  ......!!!

December 21, 2015

माँ जब नाराज हो जाती है

माँ जब नाराज हो जाती है 
तो पूरी दुनिया उदास हो जाती है
मन नही लगता तब कहीं भी 
सेहत भी अचानक खराब हो जाती है 
माँ जब नाराज हो जाती है  .... 
ख़ुशी आंसुओ में बदल जाती है
जिंदगी बेकार नज़र आती है 
भूख भी रूठ सी जाती है 
माँ जब गुस्सा हो जाती है  ...... 
जानती है सब लेकिन कहती नही है 
माँ जाने क्यों सब चुपचाप सह लेती है 
जानती हैं मेरी जिंदगी हैं वो फिर भी 
न जाने क्यों मुझसे खफा हो जाती हैं  .....
मेरी मुस्कराहट है जो 
मेरे जीने की वजह है 
माँ हिम्मत है मेरी 
मेरे सपनो की वजह है 
मेरी हिम्मत भी टूट जाती है 
माँ जब मुझसे नाराज हो जाती है  ...... 
एक वही तो है जो मुझे समझती है 
मेरे अंदर मेरे सपनो को जिन्दा रखती है 
माँ मेरे साथ नही रहती 
फिर भी मुझ में 
जीने की ख्वाहिश भर देती है 
सब छोड़ कर कहीं 
भाग जाने की इच्छा होती है 
माँ जब मुझसे नाराज होती है 
माँ जब मुझसे नाराज हो जाती है  .... !!

December 15, 2015

मेरी डायरी से ........ कुछ बिखरे पन्ने-3

गतांक से आगे .......

एक दशक हो गया है माँ को देखे हुए ....., जब भी चोट लगती है न जाने क्यों इतनी नफरत के बावजूद कह उठता हूँ माँ...... लौट आओ न.......,

माँ ....., लोग कहते हैं माँ दुनिया में सब से अच्छी होती है, सबसे प्यारी होती है, इस दुनिया में कोई साथ दे या चाहे न दे माँ हमेशा अपने बच्चो के साथ रहती है, वो उन्हें कभी छोड़ कर नही जाती, कभी भी नही.....

अक्सर जब भी खुद को देखता हूँ, जब भी अपने वजूद को महसूस करता हूँ, माँ की याद आने लगती है, मेरा होना ही मुझे माँ की याद दिला देता है, न जाने क्यों नफरत करता हूँ फिर भी याद करता रहता हूँ, शायद यहीं खासियत होती होगी माँ की कि लाख नफरतो के बाद भी वो बच्चों के जेहन से दूर नही जा पाती, मेरे जितने भी दोस्त हैं, उनकी सबकी माँ-ऐ उनके साथ रहती हैं, वो सब हमेशा खुश रहते हैं, हम सब लोग जब एक साथ एक गली में खेल रहे होते हैं तब थोड़ी देर हो जाने पर ही सब लोग यह कहकर घर लौट जाने के लिए भागने लगते हैं कि अगर घर पहुचने में देर हो गयी तो माँ डाटेंगी, अगर हम समय पर नही पहुंचे तो वो चिंता भी करने लगेंगी ....,

जब वो लोग घर जाने के लिए जल्दी में होते हैं तब मैं बिलकुल शांत हो जाता हूँ, जैसे मुझे घर जाने की कोई जल्दी नही होती और मैं इसलिए बहुत खुशनसीब हूँ क्योंकि मुझे कोई डांटने वाला नही है, या फिर डांटने वाली नही है, जो उनके पास है, जब वो लोग कहते हैं कि माँ की डांट की वजह से उन्हें जल्दी घर जाना पड़ेगा तो मैं भी बहुत शान से कह देता हूँ ....

तुम सब लोगो से तो मैं ही अच्छा हूँ, कम से कम मुझे किसी के डर से अपना मन पसंद खेल छोड़कर जल्दी घर तो नही भागना पड़ता ....

मेरे सारे दोस्त जब अपने-अपने घर चले जाते हैं तब मैं वही गली में लगे एक पेड़ के नीचे बैठ जाता हूँ और सोचने लगता हूँ कि क्या मैं सच में अच्छा हूँ ?

एक सवाल बचपन से लेकर आज तक मेरे साथ चलता आ रहा है - अगर मैं सच में अच्छा हूँ तो फिर मेरी माँ मुझे यूँ अकेला छोड़ कर क्यूँ चली गयी ?

आगे कल .....

December 14, 2015

मेरी डायरी से .......बिखरे पन्ने -2


जिंदगी में सब को सब कुछ नही मिलता ये दिल को बहलाने वाला सबसे अच्छा जुमला है, अक्सर हम इसे अपने जीवन में दोहराते रहते हैं खासकर तब जब हम कुछ पाने में नाकामयाब साबित होते हैं ...

कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि क्या जो मुझे नही मिला वो मुझे नही मिलना था, या फिर वो मुझे मिलना तो था लेकिन मेरे कुछ खास अपनों की वजह से मुझे नही मिल पाया .....

मेरे कुछ खास अपने ....., वो अपने जो अब खास नही रहे या फिर वो खास जो अब अपने नही रहे ....., एक सिक्के को चाहे इस तरफ से देखो या दूसरी तरफ से मतलब सिर्फ एक ही होता है - उसका कीमती होना ....
आज मेरी उम्र सोलह साल है, दो साल बाद मैं व्यस्क हो जाऊंगा, फिर मैं चाहे जो करूं कोई मुझे नही रोक सकता, व्यस्क होने का यही तो मतलब होता है न, जो दिल में आये कर लो, बिना ये सोचे-समझे कि आपके किये का आपके अपनों पर क्या प्रभाव पढ़ेगा, उनकी जिंदगी किस तरह से बदल जाएगी ....,

आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं भावुक हो रहा हूँ, हाँ मैं भावुक हो रहा हूँ क्योंकि मैं हो जाता हूँ भावुक जब मैं खुद से जिक्र कर बैठता हूँ माँ का .......

माँ ....., मैं कुछ खास नही जानता अपनी माँ को, हाँ मगर जितना जानता हूँ वो काफी है मेरे मन में उनके लिए नफरत पैदा करने के लिए, हाँ मैं नफरत करता हूँ अपनी माँ से ....,

मेरे अंदर सिर्फ नफरत भरी है उनके लिए मगर फिर भी मेरे दिल के किसी कौने में न जाने क्यों एक उम्मीद सी आज भी है कि शायद उन्हें भूले से याद आ जाये मेरी और वो लौट आयें मेरे पास वापस .....,
एक दशक हो गया है उन्हें देखे हुए ....., जब भी चोट लगती है न जाने क्यों इतनी नफरत के बावजूद कह उठता हूँ माँ...... लौट आओ न....

आगे कल ....

Sonam Saini

December 13, 2015

मेरी डायरी से .....बिखरे पन्ने- 1

Now, we are going to start a new segment which called is "Meri Diary se" ....हर रोज़ कुछ ऐसे ही पन्ने लेकर आउंगी, कुछ बिखरे हुए से, कुछ उलझे हुए से .....

मेरी डायरी से .....बिखरे पन्ने- 1

जिंदगी इतनी सस्ती नही है, जितना तुम उसे समझती हो, राधिका ने पूर्णिमा से कहा तो वो मुस्कुरा दी ......
तुम बस यूँ ही मुस्कुरा दिया करो मेरी बात पर .... कभी मेरी बात को सीरियसली मत लेना.....राधिका ने गुस्सा होते कहा ....
अच्छा ठीक है..... सुन रही हूँ बोलो....
सुन तो तुम पहले भी रही थी .....राधिका ने मुह बनाते हुए कहा ......
अरे बाबा ठीक है न, माफ़ कर दो.... अब से नही मुस्कुराउंगी ठीक है ....... पूर्णिमा ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा .....
मुस्कुराने को कौन मना कर रहा है यार .... ये जो तुमसे कह रही हूँ ये इसलिए तो कह रही हूँ कि तुम हमेशा मुस्कुराती रहो... कभी तुम्हारे जीवन में कोई दुःख न आये... तुम हमेशा खुश रहो......
हमेशा खुश तो कोई नही रहता यार.... पूर्णिमा ने राधिका की बात को बीच में ही काटते हुए कहा.....
अब तुम फिर से शुरू मत हो जाना ...... राधिका ने सीरियस होकर कहा तो पूर्णिमा फिर से धीरे-धीरे मुस्कुराने लगी ....
देख ये जो जीवन होता है न ये कोई मूवी नही होती कि अगर कुछ गलत हो जाये तो रिटेक ले लो.... ये लाइफ है यार इसमें मौका सिर्फ एक बार ही मिलता है....., यहाँ सब कुछ सोच-समझकर करना पड़ता है....सही भी और गलत भी .....
तो मैं क्या करूं तू ही बोल .....,
मेरी तू सुनती कहाँ है? कुछ भी कहूँ करना तो तुझे अपने मन की ही हैं न ....., पूर्णिमा के गुस्से ने फिर से राधिका के चेहरे पर मुस्कराहट ला दी ......
अच्छा एक बात कहूँ ? पूर्णिमा ने राधिका के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा ....
जब से तो तू बोले जा रही है और अब पूछ रही है कि एक बात बोलू smile emoticon बोल भी यार तुझे भी पूछने की जरूरत पड़ने लगी क्या....
एक बार मिल तो ले .....
पूर्णिमा की " एक बार मिल तो ले" वाली बात पर राधिका को हंसी आ गयी ... उसने पूर्णिमा की और देखा और मुस्कुराने लगी.......smile emoticon
अब बस यूँ ही मुस्कुराती रहना तुम, जा रही हूँ मैं .... बाय बाय ..... पूर्णिमा अपना बैग उठाकर बाहर जाने लगी तो राधिका ने उसका हाथ पकड़ लिया .....
हिम्मत नही होती है यार ....., तू तो जानती है सब ...
हम्म..... जानती हूँ तभी तो कह रही हूँ ..... जस्ट मूव ऑन ....


Sonam Saini

December 12, 2015

Devnita .......

देवनिता - Love always doesn't mean an attraction .....

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December 8, 2015

Hello .....

नमस्कार ........ 
मैं जो लिखने जा रही हूँ उसे कृपया ध्यान से पढ़ें ..., वैसे अगर ध्यान से नही पढोगे तो भी ठीक है कुछ खास बिगड़ेगा नही :) , इसलिए जैसे चाहे वैसे पढ़ लीजियेगा, उठते, बैठते, लेटते हुए, जैसे चाहे मर्ज़ी, मतलब तो सिर्फ पढने से है ..... 
ये जो स्माइली मैं बना रही हूँ इनका मतलब ये मत समझिएगा कि मैं मुस्कुरा रही हूँ, एक्चुअली मुझे बीच-बीच में ऐसे थोडा मुस्कुराता सा चेहरा बनाने की आदत सी हो गयी है .... इसीलिए बस ....  चलिए अब बहुत हो गयी भूमिका ..... वैसे भूमिका से मुझे याद आया कि स्कूल टाइम में जब कभी निबंध लिखने को बोला जाता था तब उसमे भूमिका भी लिखनी होती थी, सच कहूँ तो मुझे कॉलेज तक समझ नही आया कि भूमिका कैसे लिखी जाती है :) ...., वो तो भला हो जागरण जंक्शन वालो का जिन्होंने मुझे भूमिका लिखना भी सिखा दिया ..... चलो अब भूमिका को खत्म करते हैं और वास्तविक मुद्दे पर आते हैं ....... बी सीरियस ..... 8-)

फेसबुक पर मेरी कविताये पढ़-पढ़ के लोग पता नही मेरे बारे में क्या-क्या राय बना लेते हैं, :) खैर जो भी बनाये मैं तो जैसे हूँ वैसी ही हूँ,  आज कल बहुत सोचा है मैंने अपने बारे  में, खुद को बदलने के बारे में ... सोच रही थी कि खुद को थोडा बदल लूँ, मैं फ़िलहाल जो हूँ उससे बहुत लोगो को बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है, मैं बहुत बार प्रॉमिस करती हूँ कि आगे से ऐसा नही करूंगी और फिर खुद ही तोड़ देती हूँ :D दो-तीन घंटो में ही ..... कई बार ऐसा महसूस करती हूँ जैसे पागल हो गयी हूँ मैं .... >:o खैर पागल हूँ या नही क्या फ़र्क पड़ता है .... :/ 

जो कहने के लिए इतनी बड़ी भूमिका बनाई है मैंने वो अब तक नही लिख पाई हूँ, एक्चुअली मैं जो लिखना चाहती हूँ वो कैसे शुरू करूं समझ में नही आ रहा .... फिर भी कोशिश करती हूँ क्या पता समझ में ही आ जाये ... :) 

देवनिता मेरी पहली किताब या यूँ कहिये कि मेरा पहला प्यार :) हाँ पहला प्यार .... अपनी किताब से बहुत प्यार करने लगी हूँ, और वैसे भी एक जगह मैंने पढ़ा था .... ur book is like ur baby......  B| ....., देवनिता ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है, वो भी जो मैं सीखने की कोशिश में थी और वो भी जो मैंने कभी सीखने के बारे में सोचा भी नही था ......, देवनिता ने मुझे सपनो और हकीकत के बीच का फ़र्क समझाया, जितनी स्पीड से हम सपने देख लेते हैं न, उतनी स्पीड से सपने हकीकत नही बनते, ख्वाबो को हकीकत बनने में एक वक़्त गुजर जाता है, और ये गुजरा हुआ वक़्त हमे जिंदगी की मुश्किलों के बारे में समझा देता है ...,  

आज कल जो महसूस कर रही हूँ एक अलग ही अनुभव है वो, ऐसा लग रहा है जैसे किसी अनजान रास्ते पर चलते हुए लगता है, मोड़ आया तो मुड लिए वरना चलते रहे ..... ऐसा ही हो रहा है, कर रही हूँ और सीख रही हूँ, करने के बाद पता चलता है कि ये काम ऐसे होना था, महसूस हो रहा है जैसे एक-एक कदम रख कर चलना सीख रही हूँ ...., बहुत नया है ये सब .... 

किताब लिखना, किताब प्रकाशित होना और फिर उसके बाद, बहुत कुछ करना पड़ता है तब जाकर सफलता का एक हल्का सा स्वाद चखा जाता है ......, एक और बात सीखी है मैंने, हालात चाहे जो भी हो, कोशिश करते रहने से एक दिन कामयाबी मिल ही जाती है ......रोना, हँसना, उदास होना, निराश होना सब अपनी जगह है लेकिन अगर इन सब के साथ भी आप कोशिश कर रहे हैं तो एक दिन सफल जरुर होंगे ..... हाँ एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि ये जो सफलता है न इसकी चाल चींटी की चाल जैसे है ...., आप के दरवाजे तक आने में इसे समय की जरूरत होती है ......, थोडा समय दीजिये ये पक्का आप के घर तक भी पहुँच ही जाएगी .... :) 

कहाँ वो दिन था जब मैं सोचती थी कि अपने लिखे को टाइप कैसे करूं, लैपटॉप या कंप्यूटर नही था न हमारे पास, लेकिन मेहनत, कर्म, और शिव-शक्ति की कृपा से धीरे-धीरे सपने हकीकत बनते जा रहे हैं .....touch wood ...  

कहाँ मैं सोच रही थी की किताब कैसे छपेगी ( कोई पब्लिशर हाँ नही बोला न :/ ) और कहाँ अब मेरी ऑफिसियल वेबसाइट भी बन कर तैयार हो गयी है ..... आप यहाँ से भी देवनिता के लिए आर्डर दे सकते हैं .... क्योंकि फ़िलहाल amazon.in पर काम जारी है ....... 

http://sonamsaini.com/?post_type=product

देवनिता के लिए आर्डर देने के साथ-साथ आप लोग अपने रिव्यु भी यहाँ पोस्ट कर सकते हो ... तो देर किस बात की बूंद-बूंद से ही तो घड़ा भरता है .... :P :) :/